सम्राट अशोक की अहिंसा नीति किसके विरुद्ध थी? Against whom was the non-violence policy of Emperor Ashoka?

अशोक की अहिंसा निति ब्राह्मणो के खिलाफ थी! ऐसा हमारे भारतीय इतिहास में पढ़ाया जाता है। 

इसमें सच्चाई कितनी है यह मायने नहीं रखती है ,मायने यह रखती है कि इस बात को कितना प्रचारित किया गया है ,और हमारी शिक्षा व्यवस्था में इसा बात की स्वीकार्यता कितनी हैलोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के द्वारा हिरन के शिकार पर तो प्रश्न करते है ,

 

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ब्राह्मणों  के यज्ञ आदि पर बलि संबंधित जैसी पाखंडवाद की व्यवस्था पर बात तो करते है।लेकिन इस के आड़ में बहुत बड़ी-बडी बातों को छुपा देते है। इसके पीछे क्या कारण है पता नहीं! लेकिन यहां हम इसके इतर आज बात करेंगे सम्राट अशोक की अहिंसा निति की ,क्या सम्राट अशोक की अहिंसा नीति ब्राह्मणों के खिलाफ थीक्या अशोक पर हवन आदि पर बलि संबंधित प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया था?

 

अशोक के गिरनार अभिलेख में क्या लिखा है?

 

इसकी समीक्षा हम देवनाम्प्रिय अशोक के गिरनार एवं कालसी के अभिलेखों से ही कर लेते हैं।

 

 

अशोक के गिरनार और कालसी शिलालेख में हवन आदि का जिक्र किया गया है. अशोक के गिरनार अभिलेख का यह लिपियांतर है.

इदं धंमलिपिदेवानं प्रियेन

प्रियदसिना राजा वेखापिता।

इध न कि-चि जीवं आरभित्या प्रजूहितव्यं।

न च समाजो कतव्यो,बहुकं हि दोसं।

समाजम्हिपसति देवानंप्रियो प्रियदसि राजा'

अस्ति पि तुएकचा समाजासाधुमता देवानं-

प्रियस प्रियदसिनो राञो।पुरा महानसम्दि'

देवानं प्रियस प्रियदसिनो राञो अनुदिवसं व-

हानि प्राणसतसहत्रानि आरभिसु सुपाथाय,

से अज यदा अयं धंमलिपि लिखिता ती एव प्रा-

णा आरभरे सूपाथाय द्वौ मोरा एको मगो सो पि

मगो न ध्रुवो'एते पि घी प्राणा पछा न अरिभिसरं।

 

अनुवाद-यह लिपि देवानाम्प्रिय राजा द्वारा लिखवाई गई. यहां कोई जीव मार कर हवन ना किया जाये.और ना ही कोई सामाज(समाजिक कार्य) ही किया जाये।राजा समाज में बहुत सा दोष देखते हैं. प्ररंतु ऐसा भी कुछ समाज है जो राजा के मत में शुभ है।पहले देवनाम्प्रिय राजा के रसोई में बहुत लाख प्राणी सूप के लिए मारे जाते थे।दो मोर और एक हिरण वह भी हिरण हमेशा नहीं!यह प्राणी भी बाद में नहीं मारे जायेंगे।

 

क्या सम्राट अशोक मोर और हिरण खाते थे?

 

आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि सम्राट अशोक की पाक शाला में प्रतिदिन सिर्फ तीन ही प्राणी मारे जाते थे ,दो मोर एवं एक मृग।अब यहां ध्यान देने योग्य बात यह है इस शिलालेख में हवन आदि का उल्लेख होना ही इस बात का पुष्ट प्रमाण है की अशोक के समय हवन होते थे।उस समय  हवन की आड़ में पशु बलि दी जाती थी।

 

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सम्राट अशोक के समय हवन कौन करता था?

 

हवन मे वह आहूति अशोक ही देते थे या कोई औरस्वयं अशोक  की पाक शाला में लाखो जीव सिर्फ सूप के उद्देश्य से मार दिये जाते थे।लेकिन यहाँ प्रश्न यह उठता है कि बौध्द साहित्कारों ने क्या अशोक के अभिलेख नही पढे थेअब यहां प्रश्न यह बनता है की हवन में उस वक्त पशुओं की बलि देता कौन थाक्या यह कुकृत्य बौद्ध समाज के लोग ही करते थे?लेकिन यहाँ गिरनार कालसी अभिलेख में हवन का उल्लेख इस बात को बल देता है कि बौध्द साहित्यकारों का कही न कही से निहायत ही वैकल्पिक प्रबुध्द के व्यक्तित्व था।

जो लोगो से वास्तविकता छुपा कर सिर्फ मनगढंत तथ्य प्रस्तुत कर के अंधों के बीच मे काना राजा वाली स्थिति पैदा करते रहे है। अगर बौद्ध हवन नही करते थे तो अशोक के शिलालेख में हवन का जिक्र क्यो ?हवन तो ब्राह्मण करते थे ? यदि नहीं तो यह हवन आदि की परंम्परा की शुरूआत बौध्द भिक्षुओं ने की थी तो हवन में पशु बलि बौध्द ही दिया करते होंगे , यह कुकृत्य बौध्दों का ही रहा होगा यदि फिर भी यह दोष ब्राह्मणों पर क्योइस तरह के पशुवध युक्त यज्ञ हवन का वैदिक यज्ञ हवन से क्या लेना देना अब हवन में पशु बलि की बात तो यह विकृति बौद्ध युग में ही अस्तित्व में आई होगी इसमे कोई संशय नही है।

 

सम्राट अशोक के रसोईयों में मांसाहार पकाया जाता था?

 

रही बात पशु बलि की. सम्राट अशोक ने जो अपनी रसोईयों में दो मोर मरवाकर उसका सूप पीते थे।उसका चन्द्रगुप्त मौर्य के सिध्दांतों में क्या महत्व थावर्तमान मे राष्ट्रीय पक्षी और पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य का सबसे प्रिय पक्षी मोर था.मोर पालक भी मौर्य लोग माने जाते हैं।

 

मौर्य लोग मोर पालक थे तो अशोक खाते क्यों थे?

 

जबकी इस अभिलेख के अनुसार अशोक मोर को ही खा जाते थे..यह भी विचारणीय प्रश्न है..क्या सम्राट अशोक के पास चन्द्रगुप्त मौर्य के सिध्दांतों की लकीरों से बड़ी स्वयं की अपनी सिद्धांतों की लकीर थी?

 

 

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